रविवार, 28 जून 2020

वो क्या रात थी

                                                         


वो क्या रात थी
खुले आसमाँ तले
तेरे मेरे इश़्क की बात थी

मेरी आगोश थी
तेरे रूखसार की ताब थी
लब खामोश थे
मगर कही सब बात थी

नजारा-ए-हुस्न था
महताब की नीयत खराब थी
तेरे मेरे दिल के निकाह में
तारों की बारात थी

वो क्या रात थी
खुले आसमाँ तले
तेरे मेरे इश़्क की बात थी


गुरिंदर सिंह           

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें