रविवार, 21 जून 2020

गोरख धंधा- लघु कथा


एक सरकारी आदेश के तहत जिला प्रशासन ने शहर के सभी सावर्जनिक व धार्मिक स्थानों से भिखारियों को हटा दिया था। वृद्ध और अपंग भिखारियों को वृद्धाश्रम भेज दिया गया और निठल्लों को कोई काम करने के लिए कहा गया था। कुछ ऐसे भी थे जो बिना कुछ किए पैसा इकठ्ठा करना चाहते थे। ऐसा ही एक भिखारी एक गाँव में कुएँ के पास झोपड़ी बनाकर रहने लगा था। गाँव से उसे दो वक्त की रोटी तो मिल जाती मगर पैसा उसे कोई नहीं देता था। जो थोड़ी बहुत जमा पूंजी थी उसमें से उसने कुछ भगवे वस्त्र और एक कमंडल खरीद लिया। एक दिन उस भिखारी को एक तरकीब सूझी। वह शहर गया और दो बोरी शक्कर खरीद लाया। रात को मौका देख कर उसने शक्कर की दोनों बोरियां कुएँ में डाल दी। अगले दिन जब गाँव के लोगों ने इस्तेमाल के लिए उस कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था। गाँव के लोग इसे बाबा का चमत्कार समझने  लगे थे। तब से उस झोपड़ी के बाहर बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए लोगों की कतार लगी रहती है । अब उस कुएँ की जगह एक सुंदर भवन बन चुका है । लोग उस बाबा को मिलने के लिए सारा सारा दिन लम्बी कतार में लगे रहते हैं और कुछ लोगों को उस बाबा का गोरख धंधा समझ नहीं आ रहा है।






गुरिंदर सिंह

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