नंगे पांव । चेहरे पर बढी हुई खिचड़ी दाड़ी । सिर पर बढे हुए उलझे से बाल । बदन
पर मटमैले रंग का कुर्ता पायजामा और उपर काले रंग का कुहनियों से फटा कोट।
झुर्रियों वाले चेहरे पर दुखों का इतिहास दर्शाते भाव। वह अक्सर एक पार्क में
सिमेंट के बने बैंच पर बैठा रहता। खामोश सा। शायद उस बैंच से उसकी बहुत सी यादें
जुडी हुई थी। वह पार्क की हरी हरी घास पर बैठ जाता और बैंच पर सिर टिका लेता। उसकी
आंखों से टप टप आंसू बहकर बैंच पर फैलते रहते। लोग उसे पागल समझते। कभी शहर में
जाता तो बच्चों की टोली उसका पीछा करती और उसका मजाक उडाती।
कहते हैं कभी वह एक
सरकारी विभाग में अधिकारी होता था। एक दिन उसकी हंसती गाती जिंदगी में तूफान सा आया
और सब कुछ तबाह करके चला गया। हुआ यूँ था कि शहर के एक उद्योगपति के बिगडैल बेटे ने
उसकी पत्नी की इज्जत लूट ली थी। बदनामी के डर से उसकी पत्नी ने गले में फंदा डाल कर
आत्महत्या कर ली थी। उद्योगपति का शहर में पूरा प्रभाव था। इसलिए पुलिस भी कुछ नहीं
कर पाई। अब वह था और उसकी इकलौती बेटी। बेटी बेल की तरह बढ रही थी। पढाई के बाद वह
नोकरी करने लगी थी। एक दिन इस बूढ़े की बेटी के साथ भी वही हादशा हुआ जो उसकी पत्नी
के साथ हुआ था। तब से उसकी यह हालत हो गई है और लोग उसे पागल समझते हैं।
गुरिंदर सिंह
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