रविवार, 16 अगस्त 2020

कोशिश जारी है- लघु कथा

 


लोग कहते हैं कि हराम की कमाई में बरकत नहीं होती। मगर मैने देखा है खन्ना साहब को रिश्वत की कमाई में तरक्की करते हुए । खन्ना साहब एक सरकारी कार्यलय में कनिष्ठ अधिकारी हैं । कार्यलय की सभी खरीद के टेंडर उनकी सिफारिश से ही पास होते हैं । कार्यलय में यह बात सभी जानते हैं कि सभी अनुमोदित टेंडर में खन्ना साहब का 20% का हिस्सा होता है । 
खन्ना साहब के घर में ऐशोआराम की हर वस्तु उपलब्ध है । पाॅश इलाके में एक बड़ा घर है। महंगी गाड़ी है। उनके बेटा विदेश में पढाई करके एक अन्तर्राष्ट्रीय कम्पनी में कार्यरत हैं । बेटी भी विदेश में डाक्टर है । 
मैं भी खन्ना साहब के वर्ग का अधिकारी हूँ। टेंडर की सभी फाईलें मेरी टेबल से होकर ही वरिष्ठ अधिकारियों तक जाती हैं । ई-प्रणाली के इस युग में भी किस तरह भ्रष्टाचार होता है, मैं यह सब जानता हूँ। मैं चाहकर भी कभी इस तरह की फाईल पर अपनी आपत्ति दर्ज नहीं कर पाया । 
मुझे इमानदारी के कीड़े ने काट रखा है। मैं अपने असूलों पर ही जिंदगी जीने की कोशिश कर रहा हूँ। मैं न तो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पाया और न ही घर के लिए जरूरत की चीजें खरीद पाया। लोन की किश्तें उतारने में ही जिंदगी बीत रही है । मैं भी खन्ना साहब की तरह प्रत्येक टेंडर में अपना हिस्सा रख सकता हूँ। मगर मेरी आत्मा इसके लिए कभी तैयार नहीं होती। मेरी पत्नी अक्सर मेरी तुलना खन्ना साहब से करती रहती है और मुझे भी खन्ना साहब की तरह हर टेंडर में अपना हिस्सा रखने के लिए बोलती है। मैं सब बर्दाश्त करता रहता हूँ। नोकरी के इस आखिरी पड़ाव पर मैं अपनी आत्मा पर दाग लगने नहीं देना चाहता। मेरी कौशिश जारी है खुद को एक भ्रष्ट सिस्टम से बचा कर रखने की । 
खन्ना साहब के पास स्टेटस है। वह मिडल कलास से अपर कलास में आ चुका है। कभी कभी न चाहते हुए भी मुझे यह अच्छा लगने लगता है । सोचता हूँ कि कहीं न कहीं मैं अपने परिवार के साथ अन्याय कर रहा हूँ । मगर उसी वक़्त मेरी अंतरआत्मा मुझे दुत्कारने लगती है और मैं अपनी सोच पर शर्मशार होने लगता है । थोड़ी देर बाद मैं पारिवारिक जिम्मेदारियों में उलझ जाता हूँ। इसी उलझन के बीच फिर से खन्ना साहब का रूतबा मेरी आंखों के सामने चक्कर काटने लगता है। मिडल कलास से अपर कलास तक का सफर मेरे मन को लालची बनाने लगता है। 
मेरे अंदर एक अंतर्द्वंद चल रहा है। मेरी कोशिश जारी है इस कशमकश पर विजय पाने की । 

गुरिंदर सिंह





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